भारत के मंदिर इतने अमीर कैसे
आज हम भारत के मंदिरों की बात करें तो आप भारत के किसी भी जगह हो आप एक हिन्दू मंदिर से 10 किलोमीटर के आवरण (परिधि) क्षेत्र में हो। भारत में लगभग सभी गांव और शहरों में मंदिर देखने को मिल जाते हैं। भारतवर्ष में हिंदू मंदिरों का इतनी संख्या में पाया जाना और उन मंदिरों में अपार धन संपदा पाए जाने का बहुत बड़ा रहस्य है। इस बारे में हम आज आपको बताने वाले हैं।
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भारत के इतिहास में मंदिर
प्राचीन भारत के इतिहास में राजा महाराजाओं ने हिंदू मंदिरों के निर्माण में धन संपदा खर्च की है। प्राचीन भारत में देखने को मिलता है कि हर छोटे बड़े गांव में मंदिर थे। मंदिर केवल पूजा करने का स्थान नहीं थे बल्कि मंदिर एक शिक्षा ग्रहण करने का केंद्र हुआ करते थे। कुछ साहित्य में वर्णन मिलता है कि जिस गांव में मंदिर नहीं हो वहां हमें बसना (रहना) नहीं चाहिए। इन छोटे मंदिर में प्रारंभिक शिक्षा पढ़ाने के लिए पुजारी और गुरु होते थे। फिर कुछ बड़े मंदिर होते हैं जहां उच्च शिक्षा का अध्ययन कराया जाता था। साथ ही साथ इन बड़े मंदिरों का गुरुकुल से जुड़ाव रहता था। उच्च शिक्षा अध्ययन के लिए बड़े मंदिरों और गुरुकुल में पढ़ाई होती थी जहां सभी प्रकार की शिक्षा दीक्षा की अवस्थाएं रहते थे। प्राचीन भारत में शिक्षा ग्रहण करने के प्रमुख स्त्रोत मंदिर, गुरुकुल और विश्वविद्यालय रहते थे। विश्वविद्यालयों में प्रमुख नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, तलहीरा जैसे उच्च शिक्षा के केंद्र देखने को मिलते हैं। भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में जैसे इंडोनेशिया, सुमात्रा, कंबोडिया, बर्मा, वियतनाम जैसे देशों में भी मंदिरों में शिक्षा ग्रहण करने का स्थान का वर्णन मिलता है। इन सभी मंदिरों में शास्त्रों वेदों गणित व्याकरण अर्थशास्त्र भौतिक विज्ञान जैसे सभी महत्वपूर्ण विषय पढ़ाई जाते थे। भारत में शिक्षा प्रणाली इतनी व्यवस्थित और अत्याधुनिक थी कि यहां पर दूसरी सभी सभ्यताओं से जुड़े लोग शिक्षा अध्ययन करने आते थे। प्राचीन इतिहास में वर्णन मिलता है कि चीन और ग्रीस जैसे देशों के छात्र यहां विश्वविद्यालयों में पढ़ने आते थे। इस तरह भारत की शिक्षा प्रणाली मंदिरों से जुड़ी रहती थी यह शिक्षा प्रणाली दुनिया की सबसे प्राचीन शिक्षा प्रणाली में से एक है।
भारतीय शिक्षा प्रणाली के प्रमाण
भारतीय शिक्षा व्यवस्था सभी के लिए खुली थी इसका वर्णन लेखक ‘धर्मपाल’ द्वारा लिखित ‘द ब्यूटीफुल ट्री’ नामक किताब में मिलता है। लेखक ने ब्रिटिश रिकॉर्ड का अध्ययन करके इस किताब में बताया है कि अंग्रेज शासन के दौरान भारतीय शिक्षा व्यवस्था को पूर्ण रूप से बदला गया और पश्चिमी शिक्षा व्यवस्था लागू की गई। इस किताब में लेखक ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था के बारे में बताया गया कि भारत में मंदिरों गुरुकुल में किस तरह पढ़ाई जाता था। इस तरह ‘द ब्यूटीफुल ट्री’ किताब में बताया गया है कि भारत में शिक्षा व्यवस्था सभी के लिए खुली थी और वह किसी जाति, धर्म और वर्ण से कोई मतलब नहीं था आपकी शिक्षा ग्रहण करें। सभी लोगों को शिक्षा मिलती थी और लड़कियों को भी उतनी ही शिक्षा मिलते थे। मुख्य रूप से प्राचीन भारत में शिक्षा व्यवस्था संस्कृत भाषा में पढ़ाई जाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान प्राचीन भारतीय संस्कृति को पूर्ण रूप से नष्ट करने का कार्य किया गया और अंग्रेजी भाषा का चलन किया गया।
मंदिरों का मुख्य काम
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली सबसे प्राचीन धर्म शिक्षा प्रणाली में से एक है। भारत शिक्षा व्यवस्था का उद्गम (प्रारंभ) स्थान रहा है। भारत में मंदिर शिक्षा का एक प्रमुख स्त्रोत रहे हैं। इन मन्दिरों और गुरुकुल में शिक्षा व्यवस्था के लिए राजा रानियों के द्वारा संपूर्ण खर्च वहन किया जाता था जैसे विद्यार्थियों के रहने की व्यवस्था, भोजन की व्यवस्था, गुरुजनों के लिए व्यवस्था और सभी प्रकार की सुविधाएं जो शिक्षा ग्रहण करने के लिए जरूरी है उपलब्ध कराई जाती थी। इन मंदिरों में गुरुजनों को राज्य के राज्य द्वारा धन उपलब्ध कराया जाता था। इन मंदिरों और गुरुकुल का पूरा खर्चा शाही परिवार और शासन प्रशासन उठाता था। इस तरह भारत के सभी छोटे बड़े गांवों के मंदिरों में सभी प्रकार के लोगों के लिए शिक्षा पूरी तरह निशुल्क थी। शिक्षा व्यवस्था का ऐसा रूप विश्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है जो आज कालांतर में समय के साथ नष्ट हो गया है।
इस तरह प्राचीन भारत के इतिहास में मंदिर बहुत अमीर हुआ करते थे। मंदिरों में दान हर जगह से आते थे केवल राजा रानी से नहीं बल्कि दूसरे देशों और धनी व्यक्तियों द्वारा भी दान के रूप में धनराशि दी जाती थी। इसका एक प्रमुख उदाहरण पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुअनंतपुरम केरल है। जिस मंदिर में आज भी अरबों खरबों कि धनसंपदा होने का दावा किया जाता है।
खंडित मंदिरों का कारण
प्राचीन समय में भारत संपन्न देश था जहां दान राशि मिलने के कारण अनेकों मंदिरों का निर्माण हुआ। यह मंदिर शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में बहुत योगदान देते थे। वर्ष 1700 से पूर्व भारत शिक्षा ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्र जिसे व्यवसाय, कृषि, विज्ञान और सभी प्रकार के क्षेत्रों में उन्नति के प्रथम स्थान पर था। जब भारत में विदेशी लोगों द्वारा आक्रमण किया गया और यहां शासन करना चाहा तो उन्होंने सबसे पहले भारत की शिक्षा प्रणाली को खत्म करना शुरू कर दिया। जिनमें शिक्षा के प्रमुख स्थान मंदिरों का खंडन किया गया। अधिकतर मंदिरों को धन संपदा लूट कर उन्हें नष्ट कर दिया गया। इस तरह भारत की संस्कृति और सभ्यता को नष्ट कर विदेशी आक्रांता उनकी सभ्यता और व्यवस्था का प्रचार प्रसार करना चाहते थे। इस तरह भारत की शिक्षा व्यवस्था को यूरोपीय व्यवस्था लागू करने के बाद पूरी तरह नष्ट कर दिया गया।
आज भारत के मंदिरों में शिक्षा व्यवस्था को लेकर कोई भी गतिविधि देखने को नहीं मिलती है। मंदिरों का मुख्य उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है। वर्तमान समय में मंदिरों में दान राशि इतनी नहीं मिल पाती है। सरकार द्वारा कोई भी समर्थन नहीं किया जाता है। मंदिरों में आई हुई धनराशि पर भी सरकार लेने का प्रयास करती है। इस तरह आज के समय में मंदिरों की व्यवस्था खराब हो गई है। भारत की शिक्षा व्यवस्था का मुख्य स्त्रोत आज खत्म हो गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि आज के समाज में लोग असभ्य बन रहे हैं उनको अपनी संस्कृति और धर्म से लगाव नहीं रहा है। वर्तमान समय में उत्तर भारत में बड़े मंदिर कम देखने को मिलते हैं जबकि दक्षिणी भारत में मंदिरों के प्रति लोगों का जुड़ाव आज भी देखने को मिलता है।