कामाख्या माता मंदिर के रहस्य। भारत मे शक्तिपीठ की स्थापना

कामाख्या मंदिर भारत में स्थित शक्तिपीठ हैं। यह असम राज्य के गुवाहाटी शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह दिव्य अलौकिक देवी मंदिर नीलांचल की पहाड़ियों पर सबसे ऊपर स्थित मंदिर है। आज हम आपको देवी पार्वती के इस शक्तिपीठ के बारे में जानकारी बताने वाले हैं।

शक्तिपीठ का मतलब क्या होता है

भारतवर्ष में चार वर्ण के लोग रहते हैं जिनमें क्रमश भगवान शिव की पूजा करने वाले, भगवान विष्णु की पूजा करने वाले, देवी शक्ति की पूजा करने वाले और देवी देवताओं की पूजा करने वाले लोग हैं। मैं देवी शक्ति की पूजा करने वाले अधिकतर लोग शक्तिपीठ में मानते हैं और उसकी पूजा करते हैं।

शक्तिपीठों की कहानी

शक्तिपीठ की स्थापना की कथा यह है कि एक बार राजा दक्ष एक भव्य आयोजन करते हैं। जिसमें राजा दक्ष अपनी पुत्री पार्वती और उनके पति भगवान शिव को छोड़कर ब्रह्मांड के सभी देवी देवताओं को आमंत्रित करते हैं। इस आयोजन में राजा दक्ष भगवान शिव को अपमानित करने का प्रयास करते हैं। इससे आहत होकर पार्वती उस आयोजन में गई और अपने पति का अनादर देखकर अग्नि कुंड में आत्मदाह कर लिया। जिस कारण देवी पार्वती सती बन गई।

जब यह बात आदियोगी भगवान शिव को पता चली तो शिव क्रोधित हो गए। उनका भयंकर क्रोध देखकर सभी देवी देवता डरने लगे। उन्होंने सती को इस तरह देखकर भयंकर विनाशी ‘वीरभद्र’ रूप धारण कर लिया। ऐसे भगवान शिव ने धरती पर उत्तल पुथल मचा दी। संपूर्ण सेना का सर्वनाश कर दिया। राजा दक्ष का सर काट दिया।

भगवान शिव को शक्ति अर्थात पार्वती माता शांत रखती थी। माता पार्वती नहीं रही। उस समय ब्रह्मांड में ऐसा लगने लगा कि भगवान शिव अपना संयम खो बैठे है। जब आदियोगी माता पार्वती का मृत शरीर उठाकर तांडव करने लगे तो संपूर्ण ब्रह्मांड का अंत होने लगा। यह दुविधा लेकर सभी देवी देवता भगवान विष्णु के पास गए तो भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर माता पार्वती के शरीर के विभिन्न हिस्से कर दिए। इसके बाद भगवान शिव शांत हुए और पुनः ब्रह्मांड भी शांत हुआ। जब माता पार्वती के शरीर के विभिन्न अंग धरती पर गिरे। यह सभी अंग जहां गिरे वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई। वर्तमान में इन्हें 51 शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है।

कामाख्या माता मंदिर

सबसे प्रमुख शक्तिपीठ में जगन्नाथ पुरी, दक्षिणेश्वरी काली मंदिर, ब्रह्मानंद मंदिर और कामाख्या माता मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह मंदिर कई कारणों से प्रसिद्ध है। जिनमें जीवित पशु बलि, तंत्र विद्या और प्रसाद प्रमुख रूप से चर्चा में रहते हैं। कहा जाता है कि जब शिव तांडव के दौरान भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता पार्वती के शरीर के विभिन्न अंगों को अलग अलग कर दिया। इनमें माता पार्वती के अंगों में योनि इस स्थान पर गिरी जिस कारण यह एक दैवीय शक्तिपीठ बन पाया। मंदिर में प्रवेश करने पर इसमें अंदर एक कुंड बना हुआ है जिसकी पूजा की जाती है।

यह भारत एकमात्र ऐसा मंदिर है जो जीवित पशु बलि वह तंत्र विद्या के लिए जाना जाता है। इस मंदिर परिसर में तांत्रिक मिलते हैं जो अपनी तंत्र विद्या का प्रदर्शन करते हैं। इस मंदिर में जीवित भैंस, कबूतर, बकरे इन सभी जीवन की बलि दी जाती है।

अम्बुबाची मेला

प्रतिवर्ष जून महीने में कामाख्या माता मंदिर में अम्बुबाची मेला लगता है। यह मेला 4 दिन के लिए लगता है। इस मेले मे प्रतिदिन 5 से 20 लाख लोगों की संख्या शामिल है।

मान्यता है की इस मेले के दिनों में माता पार्वती का मासिक धर्म होता है जिस कारण ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का रंग लाल हो जाता है। चार दिनों तक आयोजित इस मेले में तीन दिन मंदिर के प्रवेश द्वार को बंद रखा जाता है। इस समय मंदिर में सफेद कपड़ा रखा जाता है। जिसको मंदिर के कपाट खुलने पर लाल रंग का पाया जाता है। इस मेले में मंदिर दर्शन करने आए भक्तों को प्रसाद के रूप में वह लाल कपड़ा और लाल रंग का जल वितरित किया जाता है।

हिंदू धर्म में जीवित बलि

हिंदू धर्म में कभी कहीं पर भी जानवरों की बलि नहीं दी जाती है। हिंदू धर्म बलि को गलत मानता है। महाभारत में दिल्ली का खंडन किया है। विष्णु पुराण में बिल्ली का खंडन किया है। किसी भी प्रकार के धार्मिक ग्रंथ मे बली को सही नहीं कराया गया है। हिंदू धर्म में मोक्ष को प्राप्त करने के लिए कर्मकांड, कर्म कांड, हठयोग यह विपिन विभिन्न तरीके बताई गई हैं।

बलि एक तंत्र योग है या एक तंत्र विद्या होती है। जिसमें जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है। लेकिन कहा जाता है कि हिंदुत्व में बलि का कोई महत्व नहीं है। बली नदी ग्रुप में तो चढ़ाई ही नहीं जाती है।

बलि क्यों चढ़ाई जाती है

इतिहास में देखे तो कई जगह पर बली इसलिए चढ़ाई जाती थी क्योंकि उस क्षेत्र में खाना उपलब्ध नहीं रहता था। ‌ऐसे में लोग भोजन के लिए मवेशियों को काटकर उन्हें खाया करते थे। जिस कारण बलि की प्रथा प्रचलित हुई और लोगों मास खाना शुरु कर दिया। इसके बाद लोगों में मांसाहार की भूख उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने इष्ट देवताओं के नाम पर बलि चढ़ाने और उसे खाने लगे।

तंत्र विद्या के कारण इस मंदिर में जीवित जानवरों की बलि चढ़ाई जाती है। एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसमें तांत्रिक देखने को मिलते हैं। भावनी तंत्र विद्या के कारण जानवरों कि बलि करते हैं।

कामाख्या मंदिर पहुंचने का रास्ता

कामाख्या मंदिर तक पहुंचने के लिए हवाई जहाज का उपयोग कर सकते हैं। यह अंबुबाची मंदिर नीलांचल की पहाड़ी पर स्थित है जो गुवाहाटी के एयरपोर्ट से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर गुवाहाटी शहर से 10 किलोमीटर दूर स्थित है। मंदिर तक सड़क, रेलवे और हवाई जहाज के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। मंदिर परिसर में दर्शन करने के लिए लोगों की भीड़ जमा होती है। ऐसे में मंदिर में वीआईपी दर्शन की सुविधा भी उपलब्ध है।

अंत में

शक्ति पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठ है। कुछ जगह पर 108 शक्तिपीठ के बारे में भी कहा जाता है। कामाख्या माता मंदिर भी माता पार्वती का एक शक्तिपीठ है। इस देवी मंदिर में जाने पर अलग ही शक्ति का अनुभव होता है। लोगों के अनुसार इस मंदिर में जाने वाले सभी लोगों की मन की इच्छा पूरी होती हैं। लोग बताते हैं कि इस मंदिर में एक बार आने पर वापस दूसरी बार दर्शन करने अवश्य जाते हैं। आशा करते हैं हमारे द्वारा बताई गई जानकारी आपको अच्छी लगी होगी।

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